लकीरें ही जब टेड़ी खींच दि उसने... हम कौन होते हैँ किस्मत पर रोने वाले.. ज़मीन ही बंजर जब दे दि उसने.. हम कौन होते हैँ बिज बोन वाले... कवि कैलाश. हम कौन होते हैँ