देर रात शोरगुल से निंद खुल गई एक तो गरमी इतनी है की वैसे ही निंद नही आती आसानी से और ये शोर, जैसे जले पे नमक छिडक रहा हो कोई ,अभी आंख लगी ही थी ,खैर उठे हम, उठना ही था देखें तो हो क्या रहा है।बाहर सामान आया है किसी का, घर बन रहा है शायद ,लगभग उतर ही गया है सब, इतमीनान हुआ अब सोते है, लेटे ही थे आकर कि आवाज आई ,अजी देख लेते बाहर की अपने घर के सामने सामान ना उतार दे हमने ऐसे देखा जैसे कच्चा ही खा जाएगे अभी और सो गए ।सुबह हुई देर से निंद खुली सारे काम जलदी में निपटाए आज जलदी जो जाना था ,तैयार होकर