गुलजार की नज्में पढ़कर हमें अपने तसव्वुर अदना लगने लगते हैं जिन्हे हम सोना समझ सहेजकर रख लेते हैं ऐसी कल्पनाओं को वो रद्दी में फेंक दिया करते हैं बेदम शायर आयुष की कलम से गुलजार की नज्में पढ़कर