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यूँ तो पहली शिक्षक/शिक्षिका माँ ही होती है, पर एक

यूँ तो पहली शिक्षक/शिक्षिका माँ ही होती है,
पर एक शिक्षिका हमेशा गुमनाम रह जाती है।
कोई करता नहीं कभी भी उसकी बातें,
वो तो योशोदा माँ समान "दीदी" होती है।।

उँगली पकड़ कर चलना सीखाया था माँ-बाबा ने,
वो "दीदी" थी पीठ पर हाथ रख सम्भाला था जिसने।
माँ के "ताने" भी बहुत ही पीड़ादायक होते हैं,
नहीं समझती है "माँ" अब पर ठीक समझा था उसने।।

बड़े हुए तो माँ का आँचल-गोदी छूटा, लगे अलग सोने,
मन की पीड़ा से रो रो कर तकिया को लगे भिगोने।
ज़िन्दगी की ठोकरों और माँ के तानो ने रुलाया तो,
वो दीदी ही थी
पोंछ आँसू सर सहलाया था बैठ सिरहाने।।

डर मेरी गली का सारमेय(श्वान) का हो या स्कूल की लड़ाई,
चोरी हो या डाका डालना हमेशा साथ निभाई।
चायना का दीवार भी छोटा है उसके पीठ के सामने,
जहाँ छुपा कर बाबा से कितनी बार मेरी जान बचाई।।

प्यार, इश्क़ औऱ मोहब्बत विरह-वेदना, दिल का टूटना,
छोटे से तो थे, हमें कहाँ पता था इतना।
मगर इस प्यार में सिर्फ दिल ही नहीं टूटा था,
 शरीर का हर भाग पीड़ा से कराह उठा था।
गाल गीले थे और गला सुख गया था,
आँखें भरी थीं और दिल खाली था।
हाँ जब कोई उसे ब्याह कर,
हमसे दूर ले गया था।।
एक वही तो थी जिसने हमें सबसे ज्यादा समझा था...!!!

सबसे ज्यादा सिखाया है तो वो दीदी ने,
जीवन की भागा-दौड़ी बढ़ने की पद्धति में।
हर मार्ग में मार्गदर्शिका थी वो मेरी,
सबसे बड़ा शिक्षिक दिखता है हमें दीदी में।।
तो
सभी दीदीयों को शिक्षक/शिक्षिका दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।।
                                       🙏🙏🙏इति:- 🙏🙏🙏
                                       ©Ajay यूँ तो पहली शिक्षक/शिक्षिका माँ ही होती है,
पर एक शिक्षिका हमेशा गुमनाम रह जाती है।
कोई करता नहीं कभी भी उसकी बातें,
वो तो योशोदा माँ समान "दीदी" होती है।।

उँगली पकड़ कर चलना सीखाया था माँ-बाबा ने,
वो "दीदी" थी पीठ पर हाथ रख सम्भाला था जिसने।
माँ के "ताने" भी बहुत ही पीड़ादायक होते हैं,
यूँ तो पहली शिक्षक/शिक्षिका माँ ही होती है,
पर एक शिक्षिका हमेशा गुमनाम रह जाती है।
कोई करता नहीं कभी भी उसकी बातें,
वो तो योशोदा माँ समान "दीदी" होती है।।

उँगली पकड़ कर चलना सीखाया था माँ-बाबा ने,
वो "दीदी" थी पीठ पर हाथ रख सम्भाला था जिसने।
माँ के "ताने" भी बहुत ही पीड़ादायक होते हैं,
नहीं समझती है "माँ" अब पर ठीक समझा था उसने।।

बड़े हुए तो माँ का आँचल-गोदी छूटा, लगे अलग सोने,
मन की पीड़ा से रो रो कर तकिया को लगे भिगोने।
ज़िन्दगी की ठोकरों और माँ के तानो ने रुलाया तो,
वो दीदी ही थी
पोंछ आँसू सर सहलाया था बैठ सिरहाने।।

डर मेरी गली का सारमेय(श्वान) का हो या स्कूल की लड़ाई,
चोरी हो या डाका डालना हमेशा साथ निभाई।
चायना का दीवार भी छोटा है उसके पीठ के सामने,
जहाँ छुपा कर बाबा से कितनी बार मेरी जान बचाई।।

प्यार, इश्क़ औऱ मोहब्बत विरह-वेदना, दिल का टूटना,
छोटे से तो थे, हमें कहाँ पता था इतना।
मगर इस प्यार में सिर्फ दिल ही नहीं टूटा था,
 शरीर का हर भाग पीड़ा से कराह उठा था।
गाल गीले थे और गला सुख गया था,
आँखें भरी थीं और दिल खाली था।
हाँ जब कोई उसे ब्याह कर,
हमसे दूर ले गया था।।
एक वही तो थी जिसने हमें सबसे ज्यादा समझा था...!!!

सबसे ज्यादा सिखाया है तो वो दीदी ने,
जीवन की भागा-दौड़ी बढ़ने की पद्धति में।
हर मार्ग में मार्गदर्शिका थी वो मेरी,
सबसे बड़ा शिक्षिक दिखता है हमें दीदी में।।
तो
सभी दीदीयों को शिक्षक/शिक्षिका दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।।
                                       🙏🙏🙏इति:- 🙏🙏🙏
                                       ©Ajay यूँ तो पहली शिक्षक/शिक्षिका माँ ही होती है,
पर एक शिक्षिका हमेशा गुमनाम रह जाती है।
कोई करता नहीं कभी भी उसकी बातें,
वो तो योशोदा माँ समान "दीदी" होती है।।

उँगली पकड़ कर चलना सीखाया था माँ-बाबा ने,
वो "दीदी" थी पीठ पर हाथ रख सम्भाला था जिसने।
माँ के "ताने" भी बहुत ही पीड़ादायक होते हैं,