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कुटिल मृदुल वचनों को सुन, उर आनंदित होते हैं। सत्य

कुटिल मृदुल वचनों को सुन, उर आनंदित होते हैं।
सत्य तो कड़वी औषधि है, जो विरले ही पीते हैं।।
इसी प्रवृत्ति ने मनुजों में, सदियों से है वास किया।
परपीडा की इच्छा में, स्वयं ही अपना नाश किया।।
सत का तत्त्व नहीं है किंचित,झूठे यश का गुणगान  करें।
औरो को विष बाण चुभाकर, स्वयं सुधा का पान करें।।
शकुनि एक नहीं इस युग में, घर घर में अब बसते हैं।
कुटिल कुचक्र में उलझे जाने, कितने अभिमन्यु मरते हैं।।
धर्मराज का जीवन भी, इस युग में कहा सुलभ होगा।
दुर्योधन पग पग में मिलते, श्री कृष्ण मिलें, दुर्लभ होगा।।

अविरल विपिन कुटिलता
कुटिल मृदुल वचनों को सुन, उर आनंदित होते हैं।
सत्य तो कड़वी औषधि है, जो विरले ही पीते हैं।।
इसी प्रवृत्ति ने मनुजों में, सदियों से है वास किया।
परपीडा की इच्छा में, स्वयं ही अपना नाश किया।।
सत का तत्त्व नहीं है किंचित,झूठे यश का गुणगान  करें।
औरो को विष बाण चुभाकर, स्वयं सुधा का पान करें।।
शकुनि एक नहीं इस युग में, घर घर में अब बसते हैं।
कुटिल कुचक्र में उलझे जाने, कितने अभिमन्यु मरते हैं।।
धर्मराज का जीवन भी, इस युग में कहा सुलभ होगा।
दुर्योधन पग पग में मिलते, श्री कृष्ण मिलें, दुर्लभ होगा।।

अविरल विपिन कुटिलता