जब ताल्लुकात ही नहीं रहे दिलसे, उन्हें खैर-ए बसर क्या देतें.... किस हाल में थे हम , उन्हें.. क्या बताते जो बेखबर थे हमसे जिनसे वास्ता रहा सिर्फ खुशियों तक का... उन्हें हाल-ए गम की खबर क्या देते.....।। हर रिश्ते के लिए कितनी ख्वाहिशें थी मन में, खूबसूरत सा फूल लगा ही जैसे चमन।में पर मेरे अज़ीज़ ही बदल रहे थे वक़्त के साथ, उन्हें कुछ पहर क्या देते..... पड़ी थी लाश ख्वाहिशों की, उन्हें ज़हर क्या देतें जिनके हमेसा साथ होने की आहट थी, वाही मसरूफ हो रहे थे जिनसे मरहम की उम्मीदें थी, वही मुह मोड़ रहे थे तुम ही बताओ उस हाल-ए मर्ज़ की दवा क्या देते.... मशरूफियत की आग में, रिश्ते खुद ही जल रहे थे उस जलते हुए आग को हम हवा क्या देते....... ©MD Shahadat #mdshahadat #poem #rishte #apne #kavita #ehsaasokealfaaz #tallukat #story #mashroof