जो यादे मुस्त़फा से दिल को बहलाया नहीं करते हक़ीक़त में वोह लुत्फ़े ज़िन्दगी पाया नहीं करते यह दरबारे मुह़म्मद है यहां मिलता है बिन मांगे अरे नादां यहां दामन को फैलाया नहीं करते सजा ले दिल की दुनिया दाग़हा-ए-इ़श्क़े अह़मद से यह ऐसे फूल हैं खिल के मुरझाया नहीं करते जगह पाई है क़िस्मत से जिन्होंने कूए त़यबा में वह ज़र्रा चांद तारों से भी शरमाया नहीं करते यह है दरबार आक़ा का यहां अपनों का क्या कहना यहां से हाथ खाली ग़ैर भी जाया नहीं करते हबीबे किब्रिया की शाने रह़मत तो ज़रा देखो सित़म सहते तो हैं लेकिन सित़म ढाया नहीं करते ! ©Gulshad Raza #ramadan