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आदमी ज़िंदगी के हर मोर्चे पर चाह कर भी कहाँ सफल ह

आदमी ज़िंदगी के हर मोर्चे पर 
चाह कर भी कहाँ सफल हो पाता है 
एक सिरा थामो तो दूसरा छूट जाता है 

संतुलन बनाने की जद्दोजहद में 
ख़ुद ही कई टुकड़ों में टूट जाता है 

ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबी ख़्वाहिशें 
वो तो अपनों के हाथों ही लुट जाता है...

©K.Shikha
  #Loneliness
kshikha5292

K.Shikha

New Creator

#Loneliness #Life

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