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  लब सिलें हैं, खामोश है ज़ुबा,   अहसासों को समे



  लब सिलें हैं, खामोश है ज़ुबा,
  अहसासों को समेट, मैंने रख लिया दिल के पास 
  ना होगी नुमाइश,जज्बातों की कभी
  बेकाबू हो, पलकों से गिरते अश्कों की कभी
  अपनी सिसकती हुई आहों को
  खामोशी से कैद कर लिया अपने 
  दिल के किसी कोने में ।
  पर, तुम ना करना जानने का प्रयास
  अपने पुरूषतत्व के अहम को
  जिन्दा रखना ,ना पिघलना
  मोम की भांति कभी 
  पर मेरे सिमटते हुए वजूद के साथ,
  अब कोई जगह नही,
   मेरे इस दिल में तुम्हारी ...।

रश्मि वत्स ।

©Rashmi Vats
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