ये वही अखबार है जिसमे खबरे कम तरिख बदलती है।। सुरु से आखिर तक कहानी एक जैसे होती है।। मैं दिन में मंज़र हज़ार देखता हूं लौटता हु घर तो कब्रिस्तान देखता हूं।। रह जाती है दुनिया की खुशियां धरी की धरी, जब इंसान का आखिरी मकाम देखता हूं।।। घर से सुबह जब कॉलेज के लिए निकलता हु अखबार पे भी नज़र डाल लेेता हु, सहम जाता है दिल मेरा अक्सर, जब सुरु से आखिर तक बस क़त्ल आम देखता हूं।। ये वही अखबार है जिसमे मंज़र हज़ार होता है, चंद पन्नो में सारा संसार होता है।। चाय की पहली पियाली के साथ जब अखबार हाथ में आता है, सरकार का अक्सर कोई नया फरमान सुनता है दाल से लेकर पेट्रोल तक का दाम बढ़ जाता है कभी कभी तो रोज़गार के नाम पे दंगा देखता हूंं।। और दंगा हो भी क्यों न, जब रोज़गार नही तो अखबार कहा से आएगा और बिन अखबार के चाय का क्या मज़ा आएगा।। बात अगर दिल्ली के अखबारों की हो तो, यहां का मंजर अजीब होता है, हर तीसरे दिन कोई राजनीतिक दंगा नसीब होता है।। वही कुछ नीचे कुछ कहानिया होती है, मोहब्बत उसके नाम पे दंगे और नादानियां होती है।। फिर हाथ खुद ब खुद आखरी पन्ना पे चला जाता है, वहां पे खेल समाचार आता है।। रविवार की तो बात निराली होती है, अखबार के साथ 2 प्याली होती है।। क्योंकि अखबार के साथ एक और अखबार होता है खबर कोई भी हो नज़र उसी पे जााता है।। वही पे थोड़ा रुक जाता हूं जब कोई मासूम की ज़िन्दगी वीरान हो जाती है कुछ लोग मासूम को भी नही बख्शते है हैवानियत की हर बुरी हद को पर करते है।। अच्छी और बुरी ख़बरों से संसार चलता है, सुबह के पहली प्याली के साथ अखबार चलता है।।