#OpenPoetry कल प्रभू श्री राम दिखे थे मुझको मेरे सपने में , बैठ के संग लक्ष्मण के फिर वो बोले मेरे सपने में की काश अगर मैं राम ना होता ,तो सीता का अपमान ना होता मां कैकेयी के हाथों से , पती मृत्यु का पाप ना होता मेरे अनुज भ्रात लक्ष्मण से , सुपर्णखा पे वार ना होता खुद मेरे पुत्रों लव और कुश से , अश्वमेघ में हार ना होता ये सुन के लक्ष्मण , बोल पड़े हे भाई , हे भाई मेरे राम सुनो - ना रावण हूँ मैं , ना राम ही हूँ , बस मेरे ज्येष्ठ भ्रात का छोटा सा अभिमान ही हूँ ना तुम जैसा पुरषोत्तम हूँ , ना उस जैसा ही ज्ञानी हूँ ना मुझको वन में जाना था ना शक्ति बाण ही खाना था ना पत्नी वियोग ही सहना था ना सुपर्णखा से , कुछ कहना था लक्ष्मण रेखा जो खींची थी वो बन्दिश नहीं वो रक्षा थी मेरी तो कुछ ना गलती थी , मुझको भी ताने मारे हैं हे भाई - मेरे राम कहो, कैसे ये तुमको पूजेंगे ये हनुमान कहाँ पाएंगे , जिनके सीने में राम बसें ये रावण के सब वंशज हैं ये रावण को ही पूजेंगे..... हे भाई मेरे राम - कहो कैसे ये तुमको पूजेंगे ये रावण के सब वंशज हैं , ये रावण को ही पूजेंगे अये रावण तू तो अमर रहे, श्री राम को सबने छोड़ दिया श्री राम बिठा के मंदिर में , रावण को खुल्ला छोड़ दिया तब जला के लंका आये थे , अब अपने ही घर की बारी है ना भाई भाई की सुनता है , ना पुत्र पिता से डरता है सब रावण के ही वंशज हैं , सब रावण से अभिमानी हैं सुपर्णखा के नाम पे ये , सीता को हर भी लाएंगे अपने झूठे आदर्शों को फिर , तुमको ये दिखलाएंगे गर प्रिय इतनी वो बहना थी , तो उसके पती को क्यों मार दिया? ये प्रश्न नहीं वो पूछेंगे , ना तुमको कुछ बतलायेंगे - रावण को श्राप तो ये भी था , गर करे दुराचार किसी स्त्री से तो सब सिर उसके फट जाएंगे सीता इसलिए सुरक्षित थी , सीता को हाथ लगाए ना रावण इतना नहीं अच्छा था पर ये रावण से ही ढोंगी हैं , ये रावण को ही पूजेंगे सब नष्ट भले ही हो जाए , ये लोभ ना अपना छोड़ेंगे ये रावण से ही लोभी हैं , ये रावण को ही पूजेंगे दस शीश तेरे ये क्यों काटें , एक शीश इनका भी इश्मे है सब रावण के ही वंशज हैं , सब रावण को ही पूजेंगे। #OpenPoetry #RavanKeVansaj