अतिशोभित रमणीक प्रकृति में है विराजमान ऋतु बरसात, जँह-तँह रह-रह घन बरस रहे गुंजायमान है तड़ित घात, चहुँ दिसि में हरियाली पसरी प्रस्फुटित नूतन किसलय-पात, नभ-गुंजित कर रहे मधुरिम विहंग सप्त-सुर साधित सब दादुर साथ, घनाच्छादित रंगमंच पर करता नृत्य सुधि खोये मस्त मलंग मयूर जात, ये सम्बोधन पतझड़ तुमको सूचित हो नीरसता क्षणभंगुर है ये अटल बात।। ©बृजेन्द्र 'बावरा' #NojotoHindi #नोजोटोहिन्दी #Nojoto_Hindi_Poetry #Best_Rain_poetry #bawraspoetry #Naturesays #NatureSpeaks #Nature_poetry #BarsaatPoetry #बरसात_कविता #प्रकृति_प्रेम #Nature_Love