दर्द की ज़िन्दगी नहीं मुझे सुकून की मौत चाहिए सुलह की धूमी नहीं बस प्रतिकार चाहिये... नहीं चाहिए कोई...! धर्म से अपने डिगूँ नहीं कर्म से कभी हटूँ नहीं नहीं चाहिए दया कभी, अभी करुणामयी दशा नहीं... क्या हठ कर जीत लिया, जो था अमृत विष रूप दिया अब विष कहकर झुंझलाते हो ,निज कर्मों से घबराते हो? द्विज धेनु सुता सबने मानी ,किन्तु ना माँगा मैंने पानी अधिकार मेरा जो भी होगा, सर्वस्व मेरा ही होगा, तृण धूल दया की मैं दे दूँ? क्या कटु वचन सुनाते हो..