खून तो तुम सबका एक जैसा है, फिर क्यों है ये फर्क़, ये भेदभाव कैसा है? तुम सब के सब मेरे ही बनाए हुए हो, इस दुनिया में तुम सब एक जैसे ही लाए गए हो। फिर क्यों बैर करने को तू शब्द छांटता है, बन्दे!क्यों मजहब के नाम पर मुझे बाँटता है? रखना जो मुझको, तो रख ले बस दिल में, ये कच्ची इमारत में, मेरा ना डेरा है। सब कुछ तो तुमको मैंने दिया है, फिर करता क्यों रहता, तेरा-मेरा है? मैंने तो मांगा ना तुझसे इक कण भी, मेरे नाम पे तू कई गले काटता है, बन्दे!क्यों मजहब के नाम पर मुझे बाँटता है? मैंने तो तुझको बस इंसा बनाया, ये जाति का वाद तो तू ही है लाया। रहना न चाहे तू क्यों ना ढंग से, मेरे नाम पर क्यों करता तू दंगे? खुद ही द्वंद की तू आह्वान लगाता, पर हिम्मत ना तुझमें, तो खुद ही नाटता है। बन्दे! क्यों मजहब के नाम पर मुझे बाँटता है? ©The Poetic Megha मजहब के नाम पर #हिन्दी #Nojoto #Poetry #ThePoeticMegha