हम चले भाव अंबार लेकर, जाने कितने अनमने जज़्बात लेकर चल चले हैं अनकहे अल्फाज़ लेकर। हम चले हैं चलने को, जाने कौन से नए-पुराने ख्वाब लेकर चल चले हैं जाने कहां-कहां पहुंचने। गुण-निर्गुण के बोझ छोड़कर, अप्रत्याशित अनैतिक सोच छोड़कर, स्वयं की खोज में हम अब तत्पर होकर। अंतर्मन में बोध लेकर, अबाध्य इच्छाओं की ओर अग्रसर चल चले हम, अहम की ही निवृत्ति को। चल चलें ♾️ -------- हम चले भाव अंबार लेकर, जाने कितने अनमने जज़्बात लेकर चल चले हैं अनकहे अल्फाज़ लेकर। हम चले हैं चलने को, जाने कौन से नए-पुराने ख्वाब लेकर