ताकते हो क्यों आसमां में सुराख नही होता। बंद कमरों में कभी आफताब नही होता। क्यों समेटे हो बादलों को अपनी मुट्ठी में, दिनों में रोशन कभी महताब नही होता। चिराग हो तो जला लो अंधेरा बहुत है यहाँ, रोशनी में रोशन कभी चिराग नही होता। ये दिल बंजर हो चला कई धोखो के बाद, बंजर में गुलिस्ता कभी शादाब नही होता। क्यों रखे हो आईने के टुकड़े छुपाकर अबतक, बारिशो में शीशा कभी बर्बाद नही होता। सुना है तेरे शहर का हाल कुछ बदला बदला है, नई इमारतों से शहर कभी आबाद नही होता। जिये जब तलक फरियाद तो आएगी तेरे तक, रिश्तों के टूटने से एहसास नाबाद नही होता। आफताब - कड़ी धूप महताब - चांद शादाब - हरा भरा नाबाद - जो अलग ना हुआ हो #आफताब