Nojoto: Largest Storytelling Platform

तुमने जो चाह था मुझको , मैं हो ही नही पाई, या यूं

तुमने जो चाह था मुझको , मैं हो ही नही पाई,
या यूं कहे,
तुमने क्या चाह था ? मुझसे , मैं समझ ही नही पाई
फर्क जो तुझमें और मुझमें था, एक कर नही पाई 
सब कुछ हां , सब कुछ खो के भी तुझको पा नही पाई,
इश्क चाह जब तूने , तुझे खोने के डर से तुझे दे नही पाई
और जब मैने चाह तुझसे, तो खाली हाथ लौट आई
बस यही से शुरू अपनी कहानी थी 
जिसे जुबां पे ला नही पाई
भरोसा तुझपे सूरज चांद से भी ज्यादा किया 
बस वोही भरोसा, मुझपे दिला नही पाई
कभी खत्म ये कहानी थी,
कभी फिर से शुरू करूं ,
चाह वही पुरानी थी 
इसके बाद न होगी किसी से होगी मोहब्बत ,
बस तुम से शुरू तुम्ही पे खत्म ये रवानी थी

©Niti Adhikari
  #नहीं…

नहीं… #Poetry

162 Views