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मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था, कि वो रोक लेगी मन

मैं ये सोचकर उसके दर से  उठा था,
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको,
हवा में लहराता जो उसका दामन,
के वो हाथ पकड़कर बैठा लेगी मुझको,
पर न ही उसने मुझको रोका,
और न ही पकड़कर बैठाया,
फासले बढ़ते गये,
और मै भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही गया।।।.😢
मैं ये सोचकर उसके दर से  उठा था,
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको,
हवा में लहराता जो उसका दामन,
के वो हाथ पकड़कर बैठा लेगी मुझको,
पर न ही उसने मुझको रोका,
और न ही पकड़कर बैठाया,
फासले बढ़ते गये,
और मै भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही गया।।।.😢