मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था, कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको, हवा में लहराता जो उसका दामन, के वो हाथ पकड़कर बैठा लेगी मुझको, पर न ही उसने मुझको रोका, और न ही पकड़कर बैठाया, फासले बढ़ते गये, और मै भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही गया।।।.😢