ख्वाइशें नहीं कि कोई महल हो मेरा, मगर झोपड़ी की दुआ भी तो नही पड़ी। हमने तुम्हे बनाया खुदा खुद के लिए, फिर निराशा की मार हमे क्यों पड़ी। तुम कहते थे दिन बदल जाएंगे हमारे, फिर क्यों उस घर मे थाली खाली पड़ी। क्यों उजड़ गए जहाँ हमारे, क्यों नफरते हर पल बड़ी। अरे हमें तो बस इंसान बनना था, ये हैवानियत की जंजीरें क्यों पड़ी। ख्वाइशें नही की महल हो हमारे, मगर झोपड़ी की दुआ भी नही पड़ी। #anticaa #nrc #jwabdo