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बहुत कुछ कहने का मन करता है कभी कभी, पर कहा नहीं ज

बहुत कुछ कहने का मन करता है कभी कभी,
पर कहा नहीं जाता...

लगता है जैसे हर वक़्त समझना सिर्फ मैं चाहती हूँ, या मेरे अंदर का कोई मूक पशु जो सीधा साधा है बस , 
जिसे भूख है सिर्फ ज़िंदा रहने की,  जिसे चारा वो समझते है।

कितना अच्छा होता ग़र मैं न ढलती उनके मिज़ाज़ में, और कितना अच्छा होता मेरे मन की राहे वो भी कभी भूलते -भटकते ।

बाते तो होती है, पर पहले जैसे बात नहीं होती, और बातों बातों में भूल जाते है की हमे कुछ बाते भी करनी थी।

वो अब साहिलों पर ही रहना पसंद करते है, और मैं बस भवंर में,

जब उभरती हूँ वहा से ,तो किनारे भी ख़ाली दिखते है 
कोई नहीं होता , कोई नहीं सुनता.....

बहुत कुछ कहने का मन करता है कभी कभी,
पर कहा नहीं जाता...

_दीपक #poetry
#poem
#love
#emotions
#feelings
#writters
#wrtting
बहुत कुछ कहने का मन करता है कभी कभी,
पर कहा नहीं जाता...

लगता है जैसे हर वक़्त समझना सिर्फ मैं चाहती हूँ, या मेरे अंदर का कोई मूक पशु जो सीधा साधा है बस , 
जिसे भूख है सिर्फ ज़िंदा रहने की,  जिसे चारा वो समझते है।

कितना अच्छा होता ग़र मैं न ढलती उनके मिज़ाज़ में, और कितना अच्छा होता मेरे मन की राहे वो भी कभी भूलते -भटकते ।

बाते तो होती है, पर पहले जैसे बात नहीं होती, और बातों बातों में भूल जाते है की हमे कुछ बाते भी करनी थी।

वो अब साहिलों पर ही रहना पसंद करते है, और मैं बस भवंर में,

जब उभरती हूँ वहा से ,तो किनारे भी ख़ाली दिखते है 
कोई नहीं होता , कोई नहीं सुनता.....

बहुत कुछ कहने का मन करता है कभी कभी,
पर कहा नहीं जाता...

_दीपक #poetry
#poem
#love
#emotions
#feelings
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