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हरम ए दिल में उनकी गैरमौजूदगी बहुत खल रही है शनैः

हरम ए दिल में उनकी गैरमौजूदगी बहुत खल रही है
शनैः शनैः हमारे चश्म ओ चराग की रोशनी भी ढल रही है
आब तो सारे बहा दिये हमने उनकी याद में
एक रूह ही सम्भाल कर रखी थी,अब तो वो भी जिस्म से निकल रही है

हरम-वो विशाल कक्ष जहां रानियां रहती हैं,चश्म-आशा,आब-पानी

आयुष कुमार गौतम हरम में उनकी गैरमौजूदगी
हरम ए दिल में उनकी गैरमौजूदगी बहुत खल रही है
शनैः शनैः हमारे चश्म ओ चराग की रोशनी भी ढल रही है
आब तो सारे बहा दिये हमने उनकी याद में
एक रूह ही सम्भाल कर रखी थी,अब तो वो भी जिस्म से निकल रही है

हरम-वो विशाल कक्ष जहां रानियां रहती हैं,चश्म-आशा,आब-पानी

आयुष कुमार गौतम हरम में उनकी गैरमौजूदगी