ए -रहमत-ए खुदा एक दुआं कबूल कर मेरी सबकी खुशियों की यहाँ बरकत बढ़े आलम अपनेपन का सब ओर ही हो तेरा साया है अगर हम सब पर तो सबकी ही दिल का सम्मान तू करना रहे सलामत ये जहां सारा इतना मेहरबान रहना नफरतों की इस आग को प्यार से मिटाना और जात-पात की ये खून की नदियां अब पूरी ही नष्ट कर देना बस सबको ही ना मिटे ऐसे दर्द कभी ना मिलना देना ही है तो सबको अपनी कुछ खुशियां देना तू ए रब मेरी ये बस दुआं कबूल करना मेरे खूबसूरत जहां में अपनेपन का बीज बोना नई सुबह आये अब तो ऐसा ही कुछ करना nojoto app#poetry