ठंडी ठंडी फिजाए, तन मन महकाये दीवाने शहर की, अजब चाह हु मैं...! सुंदर सुंदर नजारे, बहे नदिया के धारे सुंदर सी शायरी से, निकली वाह हु मैं...! ये कौन ठहरा है यहा मुझे देखकर हर राहगीर की दिली पनाह हु मैं...! सुन मेरी कल कल, तन मे हों हलचल खो जाये मुसाफिर सुंदर सी बांह हु मैं...! वन उपवन मित्र सारे, यही तो है मेरे सहारे सुकून भरे पल बीते खुशियों का गवाह हु मैं...! मेरी हरियाली, देख आये चेहरे पे लाली, पंछियो का कलरव, उनका सारा जहाँ हु मैं...! आना कभी इस राह से, मिलाना अपनी चाह से वो भी मुझमे खो जाये, प्रेम रंग ले बह रहा हु मैं...! पहाड़ो का सिरमौर, गांव की सुनहरी भोर, दीवाने शहर की अजब चाह हु मैं ...! हा दीवाने शहर की अजब चाह हु मैं... 😍😊 ✍️नितिन कुवादे.... ©Nitin Kuvade water fall