वाह कान्हा क्या तेरे ठाठ हैं जोहें गोपियाँ आज भी वाट हैं। तेरी याद में कान्हा का दिल की कहूँ भक्त जन जागे सारी सारी रात हैं। दूध,दही,घी शहद मिश्री से स्नान भोग में इक्कीस किस्म के पाग हैं। पाँच इन्द्रिय विकारों से बचने को मेरे हरी का पाँचजन्य शंखनाद है। तेरी शरण में आया जो भी प्राणी जन्म सफल खुल गए उसके भाग हैं। तेरी सतसंगति में राधारमण प्यारे समस्त जीव के बंधनों के खुले कपाट हैं। वाह कान्हा क्या तेरे ठाठ हैं जोहें गोपियाँ आज भी वाट हैं। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 12.08.2020 कान्हा