कहाँ तक छुपाओगे! अपनी खूबसूरत मुस्कान के पीछे, तुमने बड़ी फराकदिली से छुपा रखीं हैं, तुमपे बरती गईं खुंखार ज्यादतियां, वो गम जो तुम्हें बरबस ही मिले होंगें अपनों से, वो चोट जो अब भर चली है शायद, और वो तोहमतें जो बहुतों के लिये है किरदार तुम्हारा, तुमने निभाई है अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी, जिम्मेदारी, जो तुम पर थोपी गईं थीं, जबरदस्ती, और तुम्हें बताया गया था, की ये फ़र्ज़ है तुम्हारा, की तुम्हें हक नहीं है खुद को खुश रखने का, की तुम इंसानी दायरों से परे कोई आसमानी शै हो, और इसलिए तुम्हे इंसान होने का सौभाग्य नहीं है मयस्सर, तुम ने छुपा रखीं हैं कितनी ही भूलें इतिहास की, अपने पाक दामन में, इल्ज़ाम सहकर भी, और तुमने ही छुपा रखा है अपनी खामोशी में, सभ्यताओं का वो निर्मम प्राचीन अत्याचार, तुम्ही तो हो जिसने प्रलापों के स्वर का दम घोंट दिया, पर तुम्हे अंदाजा ही नहीं की छुपाने के क्रम में, तुमने पर्दा डाल दिया है आने वाली नस्लों की आज़ाद ख्याली पर, तुमने ही घोंट रक्खा है दम, हर उस क्रांती का जो सांस लेने को छटपटा रही है, तुम्हारा ही आदर्श सामने रख कर चुप करा दिया जाता है, हर बेबाक आवाज़ को, तुम्हारा ये छुपाना जानलेवा होता जा रहा है अग्रिम वंशों के लिये, तो एक जलता सवाल है अगर जवाब दे सको तो, ये हर एक जुल्म, चोट, प्रलाप, रंज, चीख, टीस और ना जाने क्या क्या, तुम कब तक और कहां तक छुपाओगे? ©Hemant Singh #domesticviolence #womenattrocities #abuse #Silence #tolerance #LookingDeep