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बिना वजह दिल रोता है ध्यान लगाऊं कहीं और पर ये

बिना वजह दिल रोता है
  ध्यान लगाऊं कहीं और 
पर ये उसी ग़म में होता है
       दिल डरता है 
पता नहीं किस चीज़ की फ़िक्र ये करता है
    याद करता हूं अपने किसी गुनाह को
करता हूं तोबा दिल यही कहता है या अल्लाह अब गुनाह नही होगा
    माफ़ कर दे मेरा दिल गुनाह से भरा इसे साफ़ कर दे
मेरा दिल रोता है किसी अनजान  फ़िक्र से
 तू इसे चुप कर दे अपने ज़िक्र से
         
            ज़िक्र में मज़ा फ़िक्र में सज़ा
   जानते सब मानते कब 
    दुःख में 
भूल जाते सुख में

©mohmmad asif usmani
  #ज़िक्र में मज़ा #फ़िक्र में सज़ा

#ज़िक्र में मज़ा #फ़िक्र में सज़ा #कविता

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