कविता:-नारी का सम्मान: एक सवाल..!! जिसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! ए ज़ालिम बेख़ौफ़ दरिंदे तू ! क्यों उसके बाद तूने ज़िंदा ! ये सारे दिन गुजार दिए ! जिस माँ ने तुझको जन्म दिया ! उसकी ममता को भी रौंद दिया ! अपनी बेटी और बहन की ! इज़्ज़त को झकझोर दिया ! अरे! जानवर भी अच्छा तुझसे ! तूने तो उसको पीछे छोड़ दिया ! क्यों तूने उसके बदन पे ! अपने गंदे हाथ फेर दिए ! ए हैवान, ए शैतान ! क्यों उसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! जा कालिख तू पुतवा के आ ! अपने हाथ कटा के आ ! जिन आँखों से देखा उसको ! उन आँखों को नोचवा के आ ! जा कब्र अपनी खुदवा के आ ! और खुद को सूली पर लकटा ! क्यों तूने उस नारी के ! तन पे यूँ सौ आघात किये ! ओ हवस के काफर सुन ! क्यों उसके कपडे तूने यूँ सरेआम ! बेरहमी से उतार के फेंक दिए ! रचयिता: आस्था कुकरेजा #Stoprape कविता: नारी का सम्मान: एक सवाल.. !!