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के होगा भी नहीं कभी, तू मेरा, मैं शायद बात ये जानत

के होगा भी नहीं कभी, तू मेरा,
मैं शायद बात ये जानता हूं।
फिर भी उम्मीदों में तुम्हें रख कर,
मैं शायद मुस्कुराना जानता हूं।

के होगा भी नहीं कभी जीना, मुमकिन तेरे बिना,
मैं शायद बात ये जानता हूं।
फिर भी ख्वाब ए मुस्तकबिल में तुम्हें लिए,
मैं हाथ थामकर चलना जानता हूं।

के होगा भी नही कभी, तेरे सामने कोई सवेरा,
मैं शायद बात ये जानता हूं।
फिर भी तेरे चेहरे पर निगाह टिकाकर,
मैं मफ्तून होना जानता हूं।

के होगा भी नही कभी, तेरा प्यार से मुझे पुकारना,
मैं शायद बात ये जानता हूं।
फिर भी तुम्हारे सपनों के हमसफर की खूबियों में,
मैं ढलने की कोशिश करना जानता हूं।

के होगी भी नहीं कभी, खबर तुझे,
मैं ये सब तुझसे ही कहना चाहता हूं।
फिर भी, बार बार तेरे हिस्से की बातों को,
मैं बेनाम रखना जानता हूं।

©Amit Vashisht
  # Ke hoga Bhi Nahi Kabhi......

# Ke hoga Bhi Nahi Kabhi...... #Poetry

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