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अकेला हो जाऊं खड़ा कहीं जहां मैं ही मैं रहूं मेरी

अकेला हो जाऊं खड़ा कहीं
जहां मैं ही मैं रहूं
मेरी भावनाएं रहे
मेरी कल्पनाएं रहे
मन में मंथन हो
सच्चाई का अभिनंदन हो
असत्य को पहचान पाऊं
सत्य को जान पाऊं 
स्वयं ही प्रश्न बनूं 
स्वयं उत्तर बनूं 
अकेला हो जाऊं खड़ा कहीं...
                    ✍️ मधुकांत ठाकुर

©MADHUKANT THAKUR
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