कुछ ख्वाब के खिलौने, वो चैन के बिछौने, उम्मीद के झोलों में, एहसास के मेलों में, खाने चला हूं फिर से, लाचारी के थपेड़े। ©Anand Prakash Nautiyal #ख्वाब#के#खिलौने