#OpenPoetry ऐ_मेरे_वतन_2. जैसे अंश माँ भारती के सारे, एक अंश माँ का निलाम करने चले थे, वो कश्मीर तो युगों से हमारा ही था मगर फ़िर भी क्यों, बगावत फ़िज़ूल की वो हमसे करने चले थे।। कि भीतर हर एक हिंदुस्तानी के, देश प्रेम रगों से रागों तक बसा है, शायद भूल बैठे थे सारे, ज़र्रे ज़र्रे में हमारे, देश प्रेम का एक अलग ही नशा है।। ऐ वतन मेरे मुझपर हैं तेरे कई एहसान, मेरी पहचान मेरा ईमान है तू, मेरे वतन मेरी जान है तू।। मेरा अस्तित्व मेरी शक्सियत है तूझसे, संतान हम सारे तेरे, हमारा अभिमान है तू, माँ हमारा अभिमान है तू।। जान की बात करते हो रुह भी निलाम कर देंगे, गुरूर है अभिमान है ये हिंदुस्तान हमारा, आंच आई ज़रा भी हमारे मुल्क़ पर, सरेआम गद्दारों का कत्लेआम कर देंगे।। माँ भारती की संतान हैं हम, मौत को भी हम डरते नहीं, जो दाग माँ पे लगाने की करोगे कोशिश, हर कोशिश हम गद्दारों की नाकाम कर देंगे,