बादल की कहानी ये तो सावन मेघ जो अच्छा । इंसानी हृदय का करता जरा विस्तार ।। अब देख मनुज जो कल संदल निकलेगा । ना सिखलाना तो उसको बैर ।। स्नेह बूँद से सींचा है मैने उसको । होगा वो इस धरती का शेर ।। ना व्याकुल अब ये धरती होगी । ना हीं होगी ये दोजख का देश ।। मनोरम दृश्य परिलक्षित होंगे । धरती बन जायेगी स्वर्ग सरीखा देश ।। मेघ वर्षा हो जाने पर धानी ये चुनर फहरायेगी । ना अब रक्त रंजित होगा छाती इस धरती का । रीते-रीते फ़िर गुनगुन गीत अपनी ये धरती गायेगी ।। अम्बर नीचे फ़िर छाया है देखो फिर से काला मेघ । बरखा से फिर भिगेगी धरती नैन उठा और फ़िर से देख ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-2) बादल की कहानी