मैं मय में ही खो जाऊं, अगर मैं तुझको न पाऊं, ऐसे जीने से क्या फायदा, मैं जमीं दोज हो क्यूं न जाऊं, वक्त भी तन्हाइयों को देता है, इस शमां में तेरा हो क्यूं न जाऊं, आंखो के सामने अगर दिखे न तू, इससे अच्छा है मैं सो क्यूं न जाऊं, ऐसी तड़प से अच्छा ही है, मैं जमीं दोज ..........................! मैं जमीं दोज...........!