कुछ लिखे नगमों को, ज़िन्दगी समझ बैठा था राहगीर! अन्धेरी रातों के चंद ख्वाबों को, डगर समझ बैठा था राहगीर! कुछ धुंधली यादों को, सफर समझ बैठा था राहगीर! चंद लुभावनी बातों को, ज़िन्दगी समझ बैठा था राहगीर! समय आया इम्तिहान देने को, तो अनजान बैठा है राहगीर!! ©Rohit Singh #hindi_poetry #lovepoetry #hindi_shayari #kvishalapoetry #kavi #Smile