जिंदगी के बिखरे पन्नो की किताब पढ़ने बैठा था न जाने कब कैसे यादों के शब्दकोष से कुछ अल्फ़ाज़ बिखर गए उन पलों से रु-ब-रु करा गए जो जिए थे कभी तुम्हारे साथ (पढ़िए पूरी कविता कैप्सन में) जिंदगी के बिखरे पन्नो की किताब पढ़ने बैठा था न जाने कब कैसे यादों के शब्दकोष से कुछ अल्फ़ाज़ बिखर गए उन पलों से रु-ब-रु करा गए जो जिए थे कभी तुम्हारे साथ