दुनिया के रीति रिवाज़ों में बंधने से पहले, अपने जज़्बातों से मुकरना क्या ज़रूरी है? वफ़ा जो निभा सके हर रिश्ते में, तो दिलो का बिछड़ना क्या ज़रूरी है? जो ख़ुश रख सके हसरतें हमारी, ज़ख़्मी हक़ीक़त से लड़ना क्या ज़रूरी है? वक़्त बेवक़्त जो याद आ जाओ, उसे छुपाना क्या ज़रूरी है? टूटकर जो इश्क़ ज़ाहिर कर दे, उसे चुप करना क्या ज़रूरी है? इस दुनियादारी का फ़र्ज़ निभाते निभाते, हमारी दोस्ती को क़ुर्बान करना क्या इतना ज़रूरी है? #दोस्ती #क़ुर्बानी #क्या_ज़रूरी_है #yqbaba #yqdidi #drgpoems