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जुदाई का डर इस कदर घर बनाया, दिल में है क्या ये क

जुदाई का डर इस कदर घर बनाया, 
दिल में है क्या ये कभी कह न पाए।
कई बार चाहा के जा के कहें हम,
मगर दिल में हिम्मत जुटा ही न पाए।

पता क्या बुरा मान जाएं अगर वो,
जज्बात को ही न समझें अगर वो।
इजहार करना खाता बन न जाए।
इसी डर से हम भी बयां कर न पाए।

हमें चाहें वो भी ये जरूरी नहीं तो,
हमें समझें अपना ये जरूरी नहीं तो।
बस दीदार होता रहे रोज उनकी,
यही बात उनको बता हम न पाए।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
  # जुदाई का डर