लब के लब पास है तो इंतजार किस बात का कसक उठी मिलन की तो इंकार किस बात का | चूम कर आंखों को आंखों में देखो अगर ना आंखें देखूं तो प्यार किस बात का | पलकों पर लग गया है होठों का रस अब लाख पतझड़ आए डरना किस बात का | तुम बन कर अमरबेल समेटो अपनी बाहों में छोड़ने का ख्याल आए तो आए किस बात का | "सुशील" लिखता है • सुशील ग़ाफ़िल • कल्पनाएं फिर भी मिले कोई सच्चा तो फिर मलाल किस बात का | लब के लब पास है तो इंतजार किस बात का कसक उठी मिलन की तो इंकार किस बात का| चूम कर आंखों को आंखों में देखो अगर ना आंखें देखूं तो