फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए ! काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! -1 रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी, मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! -2 क्यूँ लग गई है मेरी ख़ुशियों को बद-नज़र, हँसता तो हूँ पर अब दिल से हँसता मैं नहीं हूँ ! -3 एक राज़ कहते-कहते मैं रुक जाता था अक्सर, लेकिन ग़ज़ल में ज़ाहिर हर राज़ हो गया ! -4 ये तन्हाईयाँ जिस्म में काँटों की तरह चुभती हैं, मरहम न सही, शामिल-ए-हाल बनके चले आओ ! -5 ©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़ नागपुर , प्रोपर औरंगाबाद बिहार स0स0~9231/2017 फूलों से दिल लगाया, दिल चाक कर गए ! काँटों से दिल लगाया तो ज़ख़्म भर गए ! -1 रफ़ीक़-ए-दिल भी और दुश्मन-ए-जाँ भी, मोहब्बत भी क्या खूब शग़्ल होती है ! -2 क्यूँ लग गई है मेरी ख़ुशियों को बद-नज़र, हँसता तो हूँ पर अब दिल से हँसता मैं नहीं हूँ ! -3