अकेले बैठकर जब उस वक़्त को, मैं याद करती हूँ , न जाने कितने इल्जा़म , अपने नाम करती हूँ रुठना मनाना, रोना और मुस्काना, सब कुछ मैं, अपने साथ करती हूँ। यादों के भंवर में खुद को फँसाकर, आँसू का हरेक कतरा, तुम्हारें नाम करती हूँ नींद की झपकी कभी, जब मुझें आती है ये आँखें उस पल भी सपनों में तुम तक, मुझे ले आती है़ं। फिर हँसना मुस्कुराना, हम साथ करते हैं, सपनों की ही सही, पर उस दुनियाँ में हम -तुम, साथ होते हैं। साथ होते हैं। # हम तुम साथ होते हैं