।।श्री हरिः।।
26 - विनाद
'आ, दूध पीयेगा?' श्रीव्रजराज दोनों घुटनों में दोहनी दबाये गो-दोहन कर रहे हैं। पीछे कौन आकर खड़ा हुआ, यह जानने की उन्हें आवश्यकता नहीं। दाऊ, श्याम, भद्र, सूबल, तोक - कोई भी हों बाबा के लिए सब अपने ही हैं। नूपूरों की रुनझुन ध्वनि से केवल इतना समझा उन्होंने कि कोई शिशु है और वह उनके पीछे उनके कंधे को सहारा बनाकर खड़ा हुआ है।
'ले, मुख खोल तो!' बाबा ने देखा कि उनका कृष्ण अब उनके पीछे से सामने आ खड़ा हुआ है। यह अभी-अभी नींद से उठकर, मैया की आंख बचाकर गोष्ठ में चला आया है। अलकें बिखरी हैं, भालपर का कज्जल-बिन्दु भाल पर और नेत्रों का अञ्जन कपोलों पर फैला है। अब भी नेत्रों में आलस्य है। खड़ा-खड़ा यह दूध की उजली धार बड़े ध्यान से देख रहा है। इसका दिगम्बर रूप.....।
'दूध पीयेगा?' बाबा ने बड़े स्नेह से फिर पूछा।