White इन गलियों में कितनी बार आया हूँ, सफर को कितनी बार दोहराया हूँ, किंतु जानी पहचानी इन गलियों में- बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! अब अंतहीन अँधियारा है गगन में, पेड़ मर चुके है धुओं की तपन में, किसने मनमानी की इन गलियों में- उठते विचारों से सकपकाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! नालियों में बजरी बदबू दबी है, कटे पशुओं की थोक बिक्री लगी है, जाहिलों से लबालब इन गलियों में- मन ही मन में बेबस सकुचाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! नशे नशेड़ियों की ही दुकानें है, बस्तियों में प्रचंड मयखाने है, बेहोश मानवों की इन गलियों में- तड़पते तन देख मैं छटपटाया हूँ, बेचैन होकर आज घबराया हूँ ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich #Pollution #Living #Life #kaviananddadhich #poetananddadhich #Sad_shayri