फूलों सी कहीं दूर से आए महक फूलों सी लगता है कि कहीं आस पास ही हों दौड़ कर जाती हूं ढूंढने उस महक कों पर ढूंढ नहीं पाती वह महक फूलों सी जब आंखें तरसे तेरे दरसन को जैसे कि इंतजार किया हों बरस सी कहीं दूर से आए महक फूलों सी श्री राधा जीके और गोपी संग रास रचाए बंसी बजाये ऐसी धुन आज बजाओ मैं भी बन जाऊ वृंदावन की गोपी सी वैजयंती के फूलों की खुशबू सी प्रभु श्री हरि दर्श दिला दें मेरा मन हुआ बावरा घुमू में पागल सी कहीं दूर से आए महक फूलों सी ©Chandrawati Murlidhar Sharma #महक#फूलों सी #कविता #dilkibaat