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धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है बदरा न

धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 
बदरा ने भी आसमान पर, पहरा खूब लगाया है 

खेतों में सागर लहराए, और सीपों में मोती हैं
और चाँद की आस लगाए, उम्मीदें भी सोती हैं 
आँखों में एक ख़्वाब खिला है, जिसने रात जगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

रंगी फुहारें धनक धनक सी, आसमान तक जाती हैं
संग संग अपने नमी नमक की, आसमान से लाती हैं
ऐसे आज धरा से उन ने दरया खूब मिलाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

आसमान भी धुला धुला सा, झाँक रहा है कोने से 
रोक सका है कौन भला फिर, ख़ुदा किसी को बोने से 
खुली हथेली पर बरगद आशिक़ ने खूब लगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

नदी नदी एक राह चली है, जो सागर तक ज़ाहिर है 
चल पाए पानी पर सरपट, कौन मलंग जो माहिर है 
तकलीदों के पैराहन ने पैरों का बोझ बढ़ाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है

उदासियाँ @ धानी धूप

©Mo k sh K an
  धानी धूप
#उदासियाँ_the_journey 
#poem 
#Poetry 
#Nojoto 
#Hindi 
#ruhina 
#Zen
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 
बदरा ने भी आसमान पर, पहरा खूब लगाया है 

खेतों में सागर लहराए, और सीपों में मोती हैं
और चाँद की आस लगाए, उम्मीदें भी सोती हैं 
आँखों में एक ख़्वाब खिला है, जिसने रात जगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

रंगी फुहारें धनक धनक सी, आसमान तक जाती हैं
संग संग अपने नमी नमक की, आसमान से लाती हैं
ऐसे आज धरा से उन ने दरया खूब मिलाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

आसमान भी धुला धुला सा, झाँक रहा है कोने से 
रोक सका है कौन भला फिर, ख़ुदा किसी को बोने से 
खुली हथेली पर बरगद आशिक़ ने खूब लगाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है 

नदी नदी एक राह चली है, जो सागर तक ज़ाहिर है 
चल पाए पानी पर सरपट, कौन मलंग जो माहिर है 
तकलीदों के पैराहन ने पैरों का बोझ बढ़ाया है 
धानी धानी धूप खिली है, सावन घिर घिर आया है

उदासियाँ @ धानी धूप

©Mo k sh K an
  धानी धूप
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Mo k sh K an

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