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चंद्र कला-सी घटती- बढ़ती मानव मन की अनगिनत ख्वाहिश

चंद्र कला-सी घटती- बढ़ती
मानव मन की अनगिनत ख्वाहिशें,
पूरी हो तो लगे पूर्णिमा के चांद-सी
और अधूरी रहे तो लगे अमावस जैसी।

©Sonal Panwar
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