संघर्ष भरी, लहूलुहान है तलवार हमारी सुधर जाओ, वरना उठ गई तो बचेगी नहीं जान तुम्हारी एक क्षण भर के लिए इस रजपूती कलम को कानून तो दो दो चार दरिंदों के शीश काटकर चौराहे पर लटकाने तो दो बलात्कार तो क्या गिद्धो की नजरें नहीं उठगी एक दो लड़की तो नारी जगत जय हिंद बोल उठेगी ©fateh singh sodha