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उलझती ज़िन्दगी मेरी किसी पतंग के डोर मानिंद, सुलझाऊ

उलझती ज़िन्दगी मेरी किसी पतंग के डोर मानिंद,
सुलझाऊं कैसे जब मैं और मेरी साँसे भी इतनी उलझी है?

ऐ ज़िन्दगी! क्यों तेरी आज़माइश कभी ख़त्म नहीं होती?
हम मुसाफिऱ चार दिन के यहाँ फ़िर तू क्यों इतनी संगदिल है?

क्यों सभी टूटे से हैं यहाँ किसी मजबूर तारे के जैसे?
दे इक झोखा ही सुकूँ का, तू इतनी क्यों बोझिल है?

इस तरह नातर्स बन सबक सिखाना क्या है ज़रूरी?
दर्द में देखकर भी पिघलती नहीं, जाने क्या तेरी मुश्किल है?

काग़ज़ पर चंद हर्फ़ उतारने से कब ख़ालिश मिट जाती है?
लड़खड़ाएं जो पाँव मेरे, तू ज़लज़ला बन इतराती है।

कुछ राहत पाले, मुझे दर्द दे दे कर तू थक गयी होगी?
तुझसे बेहतर तो मौत है, मुझ जैसों को हर हाल में आसरा देती है। नातर्स - दयाहीन 
ज़लज़ला - भूकंप 

♥️ Challenge-703 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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उलझती ज़िन्दगी मेरी किसी पतंग के डोर मानिंद,
सुलझाऊं कैसे जब मैं और मेरी साँसे भी इतनी उलझी है?

ऐ ज़िन्दगी! क्यों तेरी आज़माइश कभी ख़त्म नहीं होती?
हम मुसाफिऱ चार दिन के यहाँ फ़िर तू क्यों इतनी संगदिल है?

क्यों सभी टूटे से हैं यहाँ किसी मजबूर तारे के जैसे?
दे इक झोखा ही सुकूँ का, तू इतनी क्यों बोझिल है?

इस तरह नातर्स बन सबक सिखाना क्या है ज़रूरी?
दर्द में देखकर भी पिघलती नहीं, जाने क्या तेरी मुश्किल है?

काग़ज़ पर चंद हर्फ़ उतारने से कब ख़ालिश मिट जाती है?
लड़खड़ाएं जो पाँव मेरे, तू ज़लज़ला बन इतराती है।

कुछ राहत पाले, मुझे दर्द दे दे कर तू थक गयी होगी?
तुझसे बेहतर तो मौत है, मुझ जैसों को हर हाल में आसरा देती है। नातर्स - दयाहीन 
ज़लज़ला - भूकंप 

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nazarbiswas3269

Nazar Biswas

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