#द्रौपदी नेत्र जिसके कमल, भौहे चंद्रमा सम वक्र थी... द्रुपद सुता वो द्रौपदी मानो सुदर्शन चक्र थी... जो भेद पाए मत्स्य चक्षु, वही प्रतिभावान है... अग्निसुता के योग्य वो ही वीर सामर्थ्यवान है... शर्त जो की पूर्ण ना हो, कर्ण या अर्जुन बिना... पर द्रोपदी ने कर्ण से था ये अधिकार भी छीना... सब सभागण दंग थे यह दृश्य अद्भुत था बड़ा... जब हाथ में शिव धनुष ले अर्जुन सभा में था खड़ा... जब मत्स्य चक्षु भेद डाला एक ही बस बाण में... तब ही जाकर प्राण आए द्रौपदी के प्राण में... अग्निसुता फिर पांच पतियों में विभाजित की गयी... वरदान था, फिर भी सभा में वो कलंकित की गयी... धर्म के गुणगान करते वीर सब कुछ सह गए... भीष्म के भी नयन अश्रु स्त्रोत बन कर रह गए... पंच पतियों संग सभा सहती रही जब पीर को... तब कृष्ण ने था बचाया, द्रुपद सुता के चीर को... अधर्म के उस दौर में धर्मयुद्ध की घड़ी आ गयी... गुरु द्रोण से लेकर पितामह सब को मृत्यु खा गयी... द्रौपदी ने केश धोए, दुशासन के बहते रक्त से... हो गया विजयी धर्म तब उस महासमर के अंत से... -Ravi sharma #महाभारत #द्रौपदी