जीने के लिए कुछ खास बचा रक्खा है, मैंने अपने अंदर सब्र का मकां रक्खा है!! तकलीफ़-ओ-ग़म आते है, मैं टूटता नहीं, खुद को मैंने, लौह सा बना रक्खा है! करते हैं अपने ही साज़िश मेरे खिलाफ़, मैंने हर एक का गुनाह कर जमा रक्खा है! इम्तिहान ना जाने कितने लेता है वो भी, परीक्षा में अव्वल दर्ज़ा मैंने पा रक्खा है! इब्तिला बहुत है 'कुमार' पर रोना किसका, इख्लास - ओ - इद्राक को सजा रक्खा है! #kumaarsthought #kumaarpoem #रक्खा #सब्र #इन्तहा पहले दो मिसरे मेरी कलम से लिखे हुए बहुत पहले उन्हीं को आगे बढ़ाया है। ~ इब्तिला= दुर्भाग्य, कष्ट - Unfortunate, Pain ~ इख्लास= सच्चाई, निष्ठता - Truth, Dedication ~इद्राक= समझ बूझ - Understanding