गाड़ी की सीट पर बैठा सोचता कुछ यूँ हूँ, की ये सफ़र लम्बा और ज़िन्दगी छोटी क्यूँ है ये हसाती कम और ज्यादा रुलाती क्यूँ है इन पेड़ों की तरह छूट जाते हैं पीछे अपने सारे किस्से कहानियाँ मानो लगते हैं सपने आँखों में भरे आँशु को ये छुपाती क्यूँ है कुछ यूँ सोचता हूँ ©ठाकुर परीक्षित सिंह #Shayari #poem #Zindagi #Parikshitsingh